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किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

क्षम्यतां नाथ, अधुना अस्माकं दोषः अस्ति।

अर्थ- हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती।

थोड़ा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में बांट दें।

जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥

देवनः यदा यदा गच्छति स्म तदा तदा आहूतवान्।

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।

अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर read more कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।

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जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

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